हमारे यहाँ बुद्धिजीवियों की एक ऐसी जमात हैं,जो वर्ग संघर्ष से पोषित
होती हैं | जो कुछ क्षेत्रों में बड़े नाम हो गए हैं | ये लोग विचारों को अपने ढ़ंग
से परिभाषित करना पसंद करते हैं | आईए इनका विश्लेषण ‘हिंदुत्व’ के संदर्भ में
करते हैं | हिंदुत्व के संदर्भ में कोई विचारणीय विषय आया नही ,ये पूरी जमात उस पर
टूट पडती हैं और कट्टरवाद की मोहर लगा उसको ख़ारिज करती हैं | वह भी इस तर्क के साथ
हमे अपनी बात कहने की पूरी आजादी हैं , ज़ैसे अब तक किसी ने उनका ये हक मार रखा हो
| ‘क्या हिंदु या हिंदुत्व शब्द कोई गाली है’? जेसा के ये बुद्धिजीवी अपने व्यवहार
से प्रदर्शित करते हैं | साम्प्रदायिकता के बारे में यह कहा जाता हैं के यह अपने
विचारों का एक तरफा आग्रह हैं ,तो क्या ये लोग भी उसी तरहा का आग्रह नही रखते |
फिर तो ये भी साम्प्रदायिक हुए ?
हिंदुत्व क्या हैं ,ये लोग अच्छी तरहा समझते हैं | हिंदुत्व,
हिन्दुस्थान को एक-सुत्र में बाधने का सबसे आवश्यक तत्व हैं | क्योंकि हिंदुत्व ने
सभी विचारों को आत्मसात किया हैं , इस भारत भूमि पर सभी फले-फुले हैं | हिंदुत्व
में सभी विचार इस तरहा घुल चुके हैं के उन्हें अलग नही किया जा सकता | यही वह
धारणा है जो वर्ग संघर्ष को समाप्त करती हैं | शायद यही कारण हैं ,एक जमात इस विषय
पर विचार करना पसंद नही करती | उन्हें डर लगता हैं ,फिर इस वर्ग-संघर्ष पर दिये
गये लम्बे-चौडे वक्तव्यों को कौन सुनेगा , इस पर लिखे मोटे ग्रंथो को कौन पढेगा ,
इसलिए वर्ग-संघर्ष तो जारी रहना चाहिए |
कुछ इसी तरहा समाजवाद को याद
किया जाता हैं ,राममनोहर लोहिया ,कपूरी ठाकुर या किसी प्रसिद्ध समाजवादी का नाम
लेकर | जो समाजवाद का नारा विभिन्न मंचों से देते हैं,क्या उन्होंने समाजवाद को
जीवित रहने दिया हैं ? इन लोगों ने जाति, वर्ग-विशेष के नाम पर माफियाओं की एक बड़ी
फौज खड़ी की हुई हैं ,जेसे भू-माफिया ,शराब माफिया व जिन्हें हम विभिन्न नामों से
जानते हैं | जिन्होंने समाजिक न्याय के नाम पर समाजिक अन्याय किया | इसी कारण इस
देश के नागरिकों की बड़े पैमाने पर हत्या की गयी | ईमानदार लोगों को पीछे ढ़केला गया
,गुणवान लोगों व विच्रारको को डराया गया या उन पर विभिन्न तरहा के लांछन लगाए गये
| यही कारण है चरित्रवान ,गुणवान श्रेष्ठ लोग राजनीति से दूर हैं | समाजिक क्षेत्र
में धन का आभाव हो गया हैं क्योंकि अच्छे व श्रेष्ठ लोगों का धन इन माफिया
प्रवर्ति रखने वाले लोगों में स्थांतरित हो गया हैं , जो आज भी जारी हैं | इन सभी कार्यों में
उन बुद्धिजीवीयों ने उनका भरपुर सहयोग किया हैं जो उनसे धन व सम्मान पाते हैं और
वैचारिक तौर पर वर्ग –संघर्ष को जारी रखते |
में तो समझता हूँ समाजवाद के अन्त
का संकेत तभी से हो गया समझो जबसे पानी बिकना शुरू हुआ | इस देश में
कुएँ,बावडी,सराय इत्यादि बड़े पैमाने पर धर्मार्थ ट्रस्टो द्वारा बनवाई जाती थी ,ये
सब श्रेष्ठ लोगों के पास धन के आभाव में नष्ट होते जा रहें हैं या हो गये हैं | धर्मार्थ
, धर्म व धार्मिक
परम्पराओ से जुड़ा था | समय अनुसार मंदी के दौर में धर्मार्थ का काम
बड़े पैमाने पर होता था ,मजदुरी सस्ती होती थी परन्तु मंदी के दौर में मजदुरी करने
वालो को काम मिलता था | आज भी अन्न क्षेत्रोंमें अत्यंत निर्धनों को मुफ्त भोजन व
मुफ्त वस्त्र इत्यादि बांटे जाते हैं, यह सब हिंदुत्ववादी दर्शन का बोध हैं जो
परम्पराओं से जुड़ा हैं | हिंदुत्व दर्शन प्रबल समाजवादी दर्शन हैं | कुछ लोग इस
विषय पर चिन्तन से पूर्व ही इस पर पूर्ण विराम लगा देते हैं |
‘’मेरे लिए क्या तो फिर मुझे क्या ‘’ के दर्शन से बाहर निकला होगा |
देश की सेवा अच्छे विचारों का प्रसार-प्रचार करके भी की जा सकती हैं और कुछ नही तो
उनका समर्थन ही किया जा सकता हैं | यह मेरी जाति ,मेरे वर्ग का हैं,यह कितना ही
अनिष्ट करें यह कितना ही किसी को प्रताडित करें मुझे तो किसी ना किसी रूप में इसका
समर्थन करना ही हैं | सारी अव्यवस्था इसी एक विचार से फेलती हैं | क्योंकि अधिकतर
गरीब व निर्बल का साथ कोई नही देता | अगर हम सभी सच्चे अर्थो में आजादी चाहते है
तो हमे दूसरे की आजादी का सम्मान करते हुए इस अव्यवस्था से बाहर आना ही होगा |
में कोई बुद्धिजीवी नही ,पर अपने चारों ओर जो घटित होता देख रहा हूँ
केवल उन विचारों को आपके साथ साँझा कर रहा हूँ | मेरा विचार किसी की वैमनस्यपूर्ण
आलोचना नही | नेति ..नेति ...
भारत माता की जय , जय हिन्द
,वंदेमातरम...