Thursday 14 May 2015

क्या कोंग्रेस जनता में सरकार के प्रति भय उत्पन्न करना चाहती हैं ? एक मनोविश्लेषण –Q या Ans.

क्या कोंग्रेस जनता में सरकार के प्रति भय उत्पन्न करना चाहती हैं ? क्योंकि उसने संसद में किसी प्रश्न के ऊतर नही दिए,अपने प्रश्नों को ही ऊतर मान लिया  |एक मनोविश्लेषण –Q या Ans.

वह चाहती हैं जनता में निराशा का भाव बना रहे इसके लिए उसने वर्षों गवाए हैं , कितनी मेहनत लगाई गरीबी को जीवित रखने में ,हमने भ्रस्टाचार को शिष्टाचार बनाया , हमनें महनत-कशों को पंगु बनाया ,बेरोजगारी का अन्त नही | ये सब कैसे ठीक हो सकता हैं ? यक्ष प्रश्न हैं , जिसका उतर कोंग्रेस के पास नही परन्तु कोंग्रेस ने इस प्रश्न को ही उतर बना दिया | उसने मान लिया कोई समाधन नही ,कोई रास्ता नही निकल सकता | उसे कोई राह दिखाई नही देती | यही सब वह जनता को समझा रही हैं ,अब कोई रास्ता नही बचा ,अब कुछ नही हो सकता जो हम इतने वर्षों में नही कर पाए वो ये सरकार कैसे कर पाएगी ? यह सरकार गरीबों की नही हैं | कैसे होगा इसकी जिज्ञासा नही हैं , बस अपनी और से कह दिया कुछ नही हो सकता ,यह सरकार अमीरों के लिए काम कर रही हैं, गरीबों का तो इसे ख्याल ही नही इसे | अगर कुछ संभव हो भी गया तो ‘’हमारा क्या’’ होगा दोहरा संशय हैं |

 कोंग्रेस दुविधा में हैं जो कार्य  पिछले साठ वर्षों में उसे करना चाहिए था , यह सरकार आने वाले समय में केसे कर पायेगी ? या फिर कहें जो हमनें अनेक वर्षों में इतनी मेहनत से खड़ा किया वह ध्वस्त हो रहा हैं ,वह भयभीत हैं | परन्तु वह आश्वस्त नही हैं ,जनता उसके साथ हैं या नही तभी राहुल ने कहा हम निकलेगे सडको पर ,यहां भी संशय हैं |

पर खोजेंगे तो रास्ते निकलेगे ,तब संशय के बादल दूर हो जाएगे | मोदी सरकार सही दिशा में चल रही हैं |

Wednesday 11 February 2015

दीनदयाल जी उपाध्याय के विचारों में – “लोकतंत्र में लोकमत –परिष्कार कि अवधारणा”



समान लोक- इच्छा वास्तव में एक आवश्यक कल्पना मात्र है | सच तो यह है की जनतंत्र में किसी कि भी इच्छा नहीं चलती ,प्रत्येक को एक सामान्य इच्छा के अनुसार अपनी इच्छाओ ,मान्यताओ को ढालना होता है|
‘वादे –वादे जायते तत्वबोध:’यह हमारे यहाँ कि पुरानी उक्ति है |किन्तु तत्वबोध तो तभी हो सकेगा जब हम दूसरे कि बात को ध्यानपूर्वक सुनेंगे और उसमे से जो सत्यांश होगा उसको ग्रहण करेंने कि इच्छा रखेंगे|यदि दूसरे का दृष्टिकोण समझने का प्रयत्न न करते हुए हम अपने ही दृष्टिकोण का आग्रह करते जाए तो ‘वादे –वादे जायते कण्ठशोष’ कि उक्ति चीरतार्थ होगी|भारतीय संस्कृति वाद –विवाद को ‘तत्वबोध’ के साधन के रूप में देखती है|हमारी मान्यता है कि सत्य एकांगी नहीं होता,विविध कोणों से एक ही सत्य को देखा ,परखा और अनुभव किया जा सकता है|इसलिए इन विवधताओं के सामंजस्य के द्वारा जो सम्पूर्ण का आकलन करने कि शक्ति रखता है ,वही तत्वदर्शी है |वही ज्ञाता है |

दूसरे कि बात सुनना या उसके मत का आदर करना एक बात है और दूसरे के सामने झुकना बिलकुल भिन्न बात | दुसरे कि इच्छा के सामने झुकने कि तैयारी में एक खतरा सदैव बना रह्ता है | जो छुछे –सज्जन एवं धर्म-भीरु होते है वे तो सदैव अपनी बात का आग्रह छोड़ कर दूसरे कि बात मान लेते है ,किन्तु जो दुर्जन एवं दुराग्रही है वे अपनी बात मनवा कर समाज के अगुआ बन जाते है ,और धीरे –धीरे लोकतंत्र एक विकृत रूप में उपस्थित होकर समाज के लिये कष्टदायक हो जाता है |संभवतः,इसी संकट का सामना करने के लिये हमारे यहाँ के शास्त्रकारों ने लोकमत-परिष्कार की व्यवस्था की |

लोकमत –परिष्कार का कार्य वही कर सकता है जो लोकेषणाओ से ऊपर उठ चुका हो |भारत ने इसका समाधान खोज निकाला |भारत ने इस समस्या का समाधान राज्य के हाथ से लोकमत- निर्माण के साधन छीन कर किया है | लोकमत –परिष्कार का कार्य है वीतरागी द्वन्द्वातीत सन्यासियों का |लोकमत के अनुसार चलने का काम है राज्य का | सन्यासी सदैव धर्म के तत्वों के अनुसार ,जनता के ऐहिक एवं आध्यात्मिक समुत्कर्ष कि कामना लेकर अपने वचनों एवं निरिहबाचरण से जन-जीवन के ऊपर संस्कार डालते रहते है |उन्हें धर्म कि मर्यादाओ का ज्ञान कराते रहते है |कोई मोह और लोभ न होने के कारण वे सत्य का उच्चारण सहज कर सकते है |लोक –शिक्षा और लोक –संस्कार के वही केन्द्र है |शिक्षा और संस्कार से ही समाज के जीवन-मुल्य बनते है और सुदृढ़ होते है | इन मूल्यों को बांध रखने के बाद लोकेच्छा कि नदी कभी अपने तटो का अतिक्रमण कर संकट का कारण नहीं बनेगी |


अंत: सबसे अधिक महत्व है जनता को सुसंस्कृत करने का,लोकमत परिष्कार का |जब तक इस काम को करने वाले राज्य के मोह से दूर,भय से मुक्त ,महपुरुष एवं संघटक रहेंगे ,लोकमत अपनी सही दिशा में ही चलता जायेगा |

Thursday 28 August 2014

न प्रेम पर प्रतिबंध ,न राजनीति ,हिन्दुओ को भी आत्मरक्षार्थ अपनी बेटियों के हक में खड़ा होने का पुरा हक हैं |

आजकल टी.वी.चेनलों पर लव जिहाद पर बहुत चर्चाएँ चल रही हैं ,कोई इसे साम्प्रदायिकता की राजनीति बता रहा हैं तो कोई इसे प्रेम पर प्रतिबंध लगाना बता रहा हैं | समस्या को वास्तविक परिपेक्ष्य में कोई नही रखता | इसकी जमीनी हकीकत को समझने के लिए हमे भूतकाल का अवलोकन करना होगा |
जब शहंशाह अकबर ने जोधाबाई से विवाह किया तब मुस्लिम धर्म मतावलंबियों ने उन पर दबाब बनाया की जोधाबाई का धर्म परिवर्तन किया जाए , उस समय की परिस्थितियां ऐसी थी शहंशाह इस दबाब से बाहर निकल गए | शहंशाह का मूल संदेश रापुताना को मित्रता का असाहस कराना भी था | उसी शहंशाह ने अपने पुत्र के प्रेम के साथ क्या बर्ताव किया ये सभी जानते हैं |

आज भी क्या परिस्थितियां उसी प्रकार की हैं जब कोई हिन्दू- लड़का किसी मुस्लिम- लड़की से प्रेम विवाह करता हैं तो लडके का धर्म परिवर्तन आवश्यक हैं, जब कोई हिन्दू - लड़की किसी मुस्लिम - लडके से विवाह करें तो लड़की का धर्म परिवर्तन आवश्यक हैं,  यानि दोनों परिस्थितियों में हिन्दू लडके -लड़की का ही धर्म परिवर्तन होता हैं | जो ऐसा नही करते उन पर किस-किस तरह के दबाब बनाए जाते हैं यह सभी को मालुम हैं | अधिकतर इन युगल दम्पति  को दबाब के आगे झुकना ही पड़ता हैं, क्योंकि हर कोई शहंशाह नही होता | जो नही झुकता वह प्रताडना का शिकार भी होता हैं | यही लव जिहाद हैं | इस प्रताड़ना का शिकार हिन्दू लड़की को ज्यादा झेलना पड़ता हैं क्योंकि उनका सम्पर्क अपने परिवार से लगभग टूट जाता हैं | वह लगातार प्रताडित होती हैं क्योंकि उसकी वेदना को समझने वाला कोई नही |
क्या व्यवहार के इस धरातल को समझने व उनकी आवाज उठाने वाले साम्प्रदायिक राजनीति कर रहें हैं | अगर संकीर्ण सोच वालो की समझ में यही आता हैं , तो हिन्दुओ को भी आत्मरक्षार्थ अपनी बेटियों के हक में खड़ा होने का पुरा हक हैं |

''हिंदुत्व  एक ऐसी भू-सांस्कृतिक अवधारणा है,जिसमें सभी के लिए आदर हैं,स्थान है और सह-अस्तित्व का भाव भी | इस सह-अस्तित्व -प्रधान सांस्कृतिक चेतना ने इसे अत्यंत उदार,सहिष्णु और लचीला भी बनाया |बात तब बिगड़ी ,जब विदेशी आक्रमणकारियों की संस्कृतियों ने इस अति सहिष्णु संस्कृति की उदारता का लाभ उठाकर इसकी जड़ें ही कटनी प्रारम्भ कर दी | हिंदुत्व की इस अति सहिष्णुता को इसकी कायरता माना गया तथा उसके जो मूल तत्व थे ,उन्हें नष्ट-भ्रष्ट करने की हर संभव चेष्टा की गई ;अभी भी इस हेतु तरह-तरह के षडयंत्र रचे जाते हैं | अति सहिष्णुता ने 'हिंदुत्व' अथार्त भारतीयता के समर्थक व अनुयायियों को उदासीन,नपुंसक और भाग्यवादी बना दिया | 'आत्मवत् ' का जो सर्वकल्याणकारी दर्शन है, उसका अर्थ यह नही था की संसार व व्यवहार के धरातल पर हम स्वयं के प्रति अपने कर्तव्य को भूल जाएँ और आत्मरक्षा के प्रति सतर्क ना रहें  |'' सभार -पुस्तक -हिंदुत्व ,लेखक-नरेंद्र मोहन , वरिष्ठ पत्रकार व अध्यक्ष P.T.I 

Thursday 14 August 2014

वर्ग संघर्ष से पोषित बुद्धिजीवियों का एक वर्ग -

हमारे यहाँ बुद्धिजीवियों की एक ऐसी जमात हैं,जो वर्ग संघर्ष से पोषित होती हैं | जो कुछ क्षेत्रों में बड़े नाम हो गए हैं | ये लोग विचारों को अपने ढ़ंग से परिभाषित करना पसंद करते हैं | आईए इनका विश्लेषण ‘हिंदुत्व’ के संदर्भ में करते हैं | हिंदुत्व के संदर्भ में कोई विचारणीय विषय आया नही ,ये पूरी जमात उस पर टूट पडती हैं और कट्टरवाद की मोहर लगा उसको ख़ारिज करती हैं | वह भी इस तर्क के साथ हमे अपनी बात कहने की पूरी आजादी हैं , ज़ैसे अब तक किसी ने उनका ये हक मार रखा हो | ‘क्या हिंदु या हिंदुत्व शब्द कोई गाली है’? जेसा के ये बुद्धिजीवी अपने व्यवहार से प्रदर्शित करते हैं | साम्प्रदायिकता के बारे में यह कहा जाता हैं के यह अपने विचारों का एक तरफा आग्रह हैं ,तो क्या ये लोग भी उसी तरहा का आग्रह नही रखते | फिर तो ये भी साम्प्रदायिक हुए ?

हिंदुत्व क्या हैं ,ये लोग अच्छी तरहा समझते हैं | हिंदुत्व, हिन्दुस्थान को एक-सुत्र में बाधने का सबसे आवश्यक तत्व हैं | क्योंकि हिंदुत्व ने सभी विचारों को आत्मसात किया हैं , इस भारत भूमि पर सभी फले-फुले हैं | हिंदुत्व में सभी विचार इस तरहा घुल चुके हैं के उन्हें अलग नही किया जा सकता | यही वह धारणा है जो वर्ग संघर्ष को समाप्त करती हैं | शायद यही कारण हैं ,एक जमात इस विषय पर विचार करना पसंद नही करती | उन्हें डर लगता हैं ,फिर इस वर्ग-संघर्ष पर दिये गये लम्बे-चौडे वक्तव्यों को कौन सुनेगा , इस पर लिखे मोटे ग्रंथो को कौन पढेगा , इसलिए वर्ग-संघर्ष तो जारी रहना चाहिए |

 कुछ इसी तरहा समाजवाद को याद किया जाता हैं ,राममनोहर लोहिया ,कपूरी ठाकुर या किसी प्रसिद्ध समाजवादी का नाम लेकर | जो समाजवाद का नारा विभिन्न मंचों से देते हैं,क्या उन्होंने समाजवाद को जीवित रहने दिया हैं ? इन लोगों ने जाति, वर्ग-विशेष के नाम पर माफियाओं की एक बड़ी फौज खड़ी की हुई हैं ,जेसे भू-माफिया ,शराब माफिया व जिन्हें हम विभिन्न नामों से जानते हैं | जिन्होंने समाजिक न्याय के नाम पर समाजिक अन्याय किया | इसी कारण इस देश के नागरिकों की बड़े पैमाने पर हत्या की गयी | ईमानदार लोगों को पीछे ढ़केला गया ,गुणवान लोगों व विच्रारको को डराया गया या उन पर विभिन्न तरहा के लांछन लगाए गये | यही कारण है चरित्रवान ,गुणवान श्रेष्ठ लोग राजनीति से दूर हैं | समाजिक क्षेत्र में धन का आभाव हो गया हैं क्योंकि अच्छे व श्रेष्ठ लोगों का धन इन माफिया प्रवर्ति रखने वाले लोगों में स्थांतरित हो गया हैं , जो आज भी जारी हैं | इन सभी कार्यों में उन बुद्धिजीवीयों ने उनका भरपुर सहयोग किया हैं जो उनसे धन व सम्मान पाते हैं और वैचारिक तौर पर वर्ग –संघर्ष को जारी रखते |

 में तो समझता हूँ समाजवाद के अन्त का संकेत तभी से हो गया समझो जबसे पानी बिकना शुरू हुआ | इस देश में कुएँ,बावडी,सराय इत्यादि बड़े पैमाने पर धर्मार्थ ट्रस्टो द्वारा बनवाई जाती थी ,ये सब श्रेष्ठ लोगों के पास धन के आभाव में नष्ट होते जा रहें हैं या हो गये हैं | धर्मार्थ , धर्म व धार्मिक परम्पराओ से जुड़ा था | समय अनुसार मंदी के दौर में धर्मार्थ का काम बड़े पैमाने पर होता था ,मजदुरी सस्ती होती थी परन्तु मंदी के दौर में मजदुरी करने वालो को काम मिलता था | आज भी अन्न क्षेत्रोंमें अत्यंत निर्धनों को मुफ्त भोजन व मुफ्त वस्त्र इत्यादि बांटे जाते हैं, यह सब हिंदुत्ववादी दर्शन का बोध हैं जो परम्पराओं से जुड़ा हैं | हिंदुत्व दर्शन प्रबल समाजवादी दर्शन हैं | कुछ लोग इस विषय पर चिन्तन से पूर्व ही इस पर पूर्ण विराम लगा देते हैं |

‘’मेरे लिए क्या तो फिर मुझे क्या ‘’ के दर्शन से बाहर निकला होगा | देश की सेवा अच्छे विचारों का प्रसार-प्रचार करके भी की जा सकती हैं और कुछ नही तो उनका समर्थन ही किया जा सकता हैं | यह मेरी जाति ,मेरे वर्ग का हैं,यह कितना ही अनिष्ट करें यह कितना ही किसी को प्रताडित करें मुझे तो किसी ना किसी रूप में इसका समर्थन करना ही हैं | सारी अव्यवस्था इसी एक विचार से फेलती हैं | क्योंकि अधिकतर गरीब व निर्बल का साथ कोई नही देता | अगर हम सभी सच्चे अर्थो में आजादी चाहते है तो हमे दूसरे की आजादी का सम्मान करते हुए इस अव्यवस्था से बाहर आना ही होगा |
में कोई बुद्धिजीवी नही ,पर अपने चारों ओर जो घटित होता देख रहा हूँ केवल उन विचारों को आपके साथ साँझा कर रहा हूँ | मेरा विचार किसी की वैमनस्यपूर्ण आलोचना नही | नेति ..नेति ...
 भारत माता की जय , जय हिन्द ,वंदेमातरम...


Friday 4 July 2014

क्या आप अपने नेता में इन गुणों को देखते हैं ?

हमारे यहाँ भजनों में गाया जाता हैं-
काम, क्रोध, मद, लोभ ,मोह गये छुटी जगत की आस |
उसमें तो कछु अन्तर नहीं भगत कहो चाहे भगवान |
जिन्होंने मन मर लिया जी हम तो उन सन्तन के हो दास जिन्होंने मन मर लिया |

क्या आप अपने नेता में इन गुणों को देखते हैं ? ऐसे ही नेता शीर्ष नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं | नेता जी को भी चाहिए के वह संतो के बताए मार्ग को अपनाए |
आजादी का समय परिवर्तन काल का समय था | परिवर्तन नये मूल्यों की संरचना का भी समय होता हैं | क्या आज कुछ उसी प्रकार के परिवर्तन का समय हैं ?

हमे सर्वोत्तम अवसर की पह्चान कर लेनी चाहिए | लोकतन्त्र के सभी स्तम्भ मिलकर इस कार्य को सफलतापूर्वक कर सकते हैं | आचार्य चाणक्य ने भी निजी व सावर्जनिक जीवन में इन्ही विचारों पर चलने की सलाह दी थी |

Wednesday 11 June 2014

’देश हमे देता सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे ' |

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने संसद में एक बार फिर देश की सवासौ करोड जनता का आह्वान किया आप एक कदम आगे बड़ाए देश सवासौ करोड कदम आगे बड जाएगा | सबका साथ सबका विकास | या यह कहना विकास को जनआंदोलन में बदलना होगा | यह बात तो स्पष्ट है प्रधानमंत्री सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं | देश के लिए कुछ करना चाहते है | हमारे नये प्रधानमंत्री अत्याधिक ऊर्जावान हैं वह देश के जनमानस में नयी उर्जा भर देना चाहते हैं | वह सच्चे मन से बार-बार पुकार रहे हैं कदम आगे तो बड़ाईए ,फिर देखना देश की तस्वीर किस प्रकार बदलती है | वह बार-बार विश्वास दिला रहे है में हर जगह आपके साथ खड़ा मिलुगा | प्रधानमंत्री यही तो चाहते हैं ’’जिसे जो काम मिला हैं वह उस काम को पूरी निष्ठा ईमानदारी से करें ‘’| क्या हम इसके लिए तैयार हैं ?

देश में फैली अव्यवस्था को व्यवस्था में बदलने में कुछ समय तो लगेगा | आज हर कोई नयी सरकार से कुछ ना कुछ मांग कर रहा है , कोई भी कुछ समय रुकने को तैयार नही | वर्तमान परिस्थीती यह हैं , हम प्रधानमंत्री जी की तरफ देख रहे हैं और प्रधानमंत्री जी हमारी तरफ | अगर प्रधानमंत्री जी एक कदम चलते हैं तो हमे भी तो सवासौ करोड कदम आगे बढा देने चाहिए | प्रधानमंत्री जी यही तो आह्वान् कर रहें हैं आप जो भी कार्य कर रहें हैं उसमें केवल इतना भाव ले आईए , में जो भी कार्य कर रहा हूँ वह देश के लिए कर रहा हूँ | ’देश हमे देता सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखेकेवल यही मंत्र सार्थक करना है |

कुछ लोग इस सीधे-साधे आह्वान् की भी बाल की खाल निकालने में लगे हैं ऐसा हमारे ही देश में क्यों होता हैं ?